ऋषि कपूर का जाना । हिंदी सिनेमा में ऋषि कपूर की पहचान शायद कभी खत्म नहीं होगी

ऋषि कपूर का जाना । हिंदी सिनेमा में ऋषि कपूर की पहचान शायद कभी खत्म नहीं होग . वे एक महान अभिनेता थे और उन्होंने सिनेमा के पर्दे पर उनके जीवंत अभिनय की अमिट छाप  को सारे लोग सदैव महसूस करेंगे . हिंदी सिनेमा में ऋषि कपूर का आगमन 1970 के आसपास में अपने पिता राजकपूर  के द्वारा निर्देशित फिल्म   मेरा नाम जोकर में बाल अभिनेता के रूप में  अभिनय से  हुआ  . इसके लिए उनको सर्वश्रेष्ठ  बाल अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला . इसके कुछ सालों के बाद राजकपूर की ही अगली फिल्म बाबी में नायिका डिंपल कपाड़िया के साथ  अपने प्रेमपूर्ण अभिनय से वे सिनेप्रेमियों में काफी लोकप्रिय हुए और इसके बाद निरंतर अभिनय की दुनिया में नये - नये किरदारों को अपनी अदाकारी से यादगार बनाया . शोले की तरह से बाबी भी हिदी सिनेमा के बाक्स आफिस पर सबसे ज्यादा कारोबार करने वाली फिल्मों में एक मानी जाती है . इस फिल्म का उन पर शैलेंद्र सिंह की आवाज में  फिल्माया गया  गीत मैं शायर तो नहीं मगर ऐ हसीं  आज भी फिल्म के पर्दे पर उनकी रुपहली छवि की याद दिलाता है . उन्होंने बालीवुड के तमाम दिग्गज अभिनेताओं के साथ अभिनय किया और अमर अकबर एंथोनी में अमिताभ बच्चन के साथ अपने दमदार अभिनय से सिनेप्रेमियों की प्रशंसा बटोरी . ऋषि कपूर का जन्म 4 सितंबर 1952 को मुंब ई में हुआ था और उन्होंने अजमेर के मेयो कालेज में शिक्षा प्राप्त की थी . वे एक समझदार - संजीदे और संवेदनशील आदमी थे . हरेक साल गणेश चतुर्थी के उत्सव में वे सोल्लास शामिल होते थे . उनकी अभिनीत फिल्मों में प्रेमरोग - लैला मजनू - नसीब और सरगम का नाम उल्लेखनीय है . इसके अलावा कमल हसन के साथ सागर में भी उनका अभिनय यादगार रहेगा . सिनेमा के पर्दे पर पारिवारिक - सामाजिक प्रसंगों को अपनी सहज संवाद प्रस्तुति से और संवेदनशील अभिनय से साकार करने वाले इस अभिनेता की अनुपस्थिति को दर्शक बराबर महसूस करेंगे . . . . राजीव कुमार झा . व्हाटस अप 8102180299