*प्रवासियों के पुनर्स्थापन के लिए सरकार और सामाजिक संस्थाओं के रोडमैप को लेकर राष्ट्रीय वेबिनार में हुआ विमर्श*

भूमिहीन एवं छोटे सीमांत कृषकों के लिए वरदान साबित होगा सरकार का एफपीओ - नरेंद्र सिंह तोमर*


 


चित्रकूट/ कोरोना संकट के दौरान देश प्रवासी मजदूरों के गांवों में लौटने की बड़ी चुनौती से जूझ रहा है। यह संख्या अब करोड़ों में पहुंच चुकी है। इनमें से बड़ी तादाद में प्रवासी श्रमिक गांव में ही रुकने के इरादे से वापस आ रहे हैं। इस संदर्भ में दीनदयाल शोध संस्थान ने बड़ी संख्या में ऐसे मजदूरों से बात की है। रिवर्स माइग्रेशन से संबंधित विभिन्न बिंदुओं पर सर्वेक्षण कार्य भी शुरू कराया है। इसके अलावा देशभर में भी अन्य कई स्वयंसेवी संस्थाओं के द्वारा प्रवासी मजदूरों के पलायन को लेकर सर्वे हुए हैं। इसके आधार पर सरकार और सामाजिक संस्थाओं के पास क्या रोडमैप है, उसके लिए दीनदयाल शोध संस्थान के द्वारा राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया।


 


राष्ट्रीय वेबिनार में कनेरी मठ के स्वामी श्री सिद्धीगिरी जी महाराज, भारत सरकार के कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, उत्तर प्रदेश सरकार के कृषि विकास मंत्री सूर्यप्रकाश शाही, मध्य प्रदेश शासन के कृषि विकास मंत्री कमल पटेल, दीनदयाल शोध संस्थान के प्रधान सचिव अतुल जैन, संगठन सचिव अभय महाजन, सचिव रामकृष्ण तिवारी, बसंत पंडित, महाप्रबंधक अमिताभ वशिष्ठ के अलावा ट्राइफेड के प्रबंध निदेशक प्रवीर कृष्ण, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक(कृषि) डॉ. ए के सिंह, उप महानिदेशक (शिक्षा) डॉ आर सी अग्रवाल, आईएआरआई के संयुक्त निदेशक डॉ जेपी शर्मा, अटारी जबलपुर के निदेशक डॉ अनुपम मिश्र, महात्मा गांधी राज्य ग्रामीण विकास संस्थान जबलपुर के निदेशक डॉ. संजय सर्राफ, कृषि विज्ञान केंद्र मझगवां के प्रमुख डॉ राजेंद्र सिंह नेगी सहित देश भर की कई प्रमुख संस्थाओं एवं सरकार के विभिन्न विभागों के अधिकारियों की उपस्थिति रही।


 


वेबिनार का संयोजन कर रहे दीनदयाल शोध संस्थान के प्रधान सचिव अतुल जैन ने कहा कि प्रवासी मजदूरों का पलायन एक गंभीर विषय है, उनके पुनर्स्थापन के लिए सरकार और समाज के बीच दीनदयाल शोध संस्थान और अन्य स्वयंसेवी संगठन किस तरह सेतु के रूप में कार्य कर सकते हैं, इसलिए इस वेबिनार के माध्यम से इस दिशा में शुरुआती एक रोडमैप बनाने का प्रयास है। इस पूरी समस्या का बहुत बड़ा ग्राफ है। पूरी तरह विश्लेषण करके उसमें काम होना चाहिए। जो योजना बने वह देशानुकूल के साथ युगानुकूल भी रहे। इसके लिए सबसे विचार विमर्श करके इस दिशा में अपने अनुभव साझा किए जा रहे हैं।


 


वेबिनार में मध्य प्रदेश शासन के कृषि मंत्री कमल पटेल ने कहा की मेहनत किसान करता है, मजदूरी करता है और जब लाभ की बारी आती है तो बिचौलिए ले जाते हैं। अब नई व्यवस्था के तहत हमने बिचौलिए की प्रथा को समाप्त किया है। अब सीधे किसानों को लाभ मिलेगा। गांव की तस्वीर बदलने की दिशा में सरकार संकल्पित है। किसान देश की रीढ़ है और हम रीढ़ को कमजोर नहीं होने देंगे। 


उन्होंने होशंगाबाद संभाग का उदाहरण देते हुए कहा कि हरदा एवं होशंगाबाद जिले में 1 लाख 76 हजार 142 हेक्टेयर में मूंग का उत्पादन हुआ है, इस अंचल में ग्रीष्मकालीन मूंग की प्रति हेक्टेयर औसत पैदावार 10 से 12 क्विंटल हुई है। जो कि एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। जिसमें किसानों और श्रमिकों को लाॅकडाउन के समय विभिन्न कार्यों से रोजगार भी मिला है, और आमदनी भी दोगुनी हुई है। अब जो मजदूर अपने गांव वापस आए हैं वह अब काम के लिए बाहर नहीं जाएंगे। हमारी मध्य प्रदेश की सरकार उनको प्रदेश के अंदर ही रोजगार मुहैया कराएगी। इसके लिए हमारी सरकार सक्षम भी है। प्रधानमंत्री जी ने जो एक लाख करोड़ रुपए कृषि क्षेत्र के लिए दिए हैं, उससे श्रमिकों को रोजगार भी मिलेगा और खेती का विकास भी होगा।


 


उत्तर प्रदेश सरकार के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने वेबिनार में कहा कि उत्तर प्रदेश में योगी जी के नेतृत्व में माइग्रेशन कमीशन का गठन श्रमिकों के लिए किया गया है। माइग्रेशन कमीशन के द्वारा प्रदेश के उद्योगों में प्रवासी श्रमिकों को कैसे समायोजित किया जा सकता है, उसके प्रयास शुरू हुए हैं। लगभग 15 लाख श्रमिकों को प्रदेश के ही उद्योगों में उनके स्किल के आधार पर समायोजित करने की योजना बनी है। उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में एकाएक दबाव बढ़ा है, इसीलिए थोड़ी बहुत कठिनाई जरूर है। ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था मौजूदा परिस्थितियों में मजबूत बनकर उभरे इसके प्रयास शुरू किए जा चुके हैं।


 


भारत सरकार के कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि आधी से अधिक आबादी कृषि क्षेत्र पर निर्भर है, इतनी बड़ी आबादी का विकास, उनका पोषण, उनके जीवन यापन में परिवर्तन लाना, उस हिसाब से वर्तमान में खेती का रकवा पर्याप्त नहीं है। गांव के हालात ठीक करने के लिए कृषि क्षेत्र पर निर्भरता को कम करना होगा। जहां तक पलायन का जो विषय है अगर पलायन आमदनी बढ़ाने को लेकर होता है तो उसे हतोत्साहित करने की नहीं, प्रोत्साहित करने की जरूरत है। आज जो प्रवासी हैं वह कई कैटेगरी के हैं, उन्हें वर्गीकृत करके देखने की जरूरत है। ग्रामीण क्षेत्रों की इकाइयों को अगर स्वाबलंबी बनाना है, जैसा स्वप्न परम पूज्य नानाजी देशमुख ने देखा था, उन्होंने देखा ही नहीं भारत की धरती पर करके भी दिखाया। नानाजी ने स्वावलंबी गांव कहा था, स्वाभिमानी गांव की बात की थी। आज प्रधानमंत्री मोदी जी ने उसी विचार को आगे बढ़ाते हुए आत्मनिर्भर भारत का संदेश सारे देश को दे रहे हैं। आत्मनिर्भर भारत और आधुनिक भारत यह एक लंबी यात्रा है। इसके बीच में गैप को दूर करने में हमारा क्या योगदान हो सकता है, यह सुनिश्चित करने की जरूरत है।


उन्होंने कहा कि एक समय था जब देशज ज्ञान हमारे लिए पर्याप्त था। लेकिन आज देशज ज्ञान के साथ देशज भाव को भी लाने की जरूरत है। प्रतिस्पर्धा के चलते हमारे प्राकृतिक संसाधन धीरे-धीरे नष्ट होते जा रहे हैं। हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए स्थानीयकरण हमारी आवश्यकता है, प्राकृतिक संसाधनों के प्रति ग्रामीणों में जज्बा किस तरह जागृत हो ऐसी परिस्थिति में स्वयंसेवी संगठनों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिशा में दीनदयाल शोध संस्थान के प्रयास सराहनीय हैं।


 


मनरेगा की बात पर श्री तोमर ने कहा कि अभी सामान्य तौर पर किसी को नहीं मालूम कि मनरेगा के तहत 264 तरह के काम किए जा सकते हैं, जिसमें 161 काम तो खेती से ही संबंधित हैं। जिसमें किसान अपने खेत की दशा भी बदल सकते हैं, और दिशा भी बदल सकते हैं। उससे भूमिहीन और सीमांत कृषक दोनों लाभ उठा सकते हैं। 


उन्होंने बताया कि सरकार ने 10 हजार नए एफपीओ बनाने की योजना बनाई है। जिससे रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे और कृषकों की आमदनी भी बढ़ेगी। एफपीओ में लघु व सीमांत किसानों का एक समूह होगा, जिसमें उससे जुड़े किसानों को न सिर्फ अपनी उपज का बाजार मिलेगा बल्कि खाद, बीज, दवाइयां और कृषि उपकरण आदि खरीदना आसान होगा। सेवा सस्ती मिलेगी, और बिचौलियों के मकड़जाल से मुक्ति मिलेगी‌। भूमिहीन लोगों को भी एफपीओ के माध्यम से पशुपालन, सूकर पालन, मधुमक्खी पालन आदि कई उद्योगों से जोड़ा जा सकता है। इसके लिए सरकार ने प्रत्येक एफपीओ को दो करोड़ के लोन का प्रावधान करने का विचार किया है। इसके अलावा जो 63 लाख स्व सहायता समूह बने हैं, जिसमें लगभग छह करोड़ महिलाएं जुड़ी हुई है। उसको और मजबूत किया जा सकता है। इसके लिए 20 लाख का लोन बगैर गारंटी के समूह को मिल सके, ऐसा प्रयास सरकार ने किया है।


प्रधानमंत्री जी के द्वारा आत्मनिर्भर भारत अभियान के लिए 20 लाख करोड़ की जो योजना है, उसके अंतर्गत जो भी योजना हमारे क्षेत्र में लागू होती है, वह ठीक से किस तरह पात्र व्यक्ति तक पहुंचे और उसे बेहतर क्रियान्वयन के लिए स्वयंसेवी संगठनों को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।


 


कनेरी मठ के स्वामी श्री सिद्धीगिरी महाराज ने अपने विचार रखते हुए कहा कि जो भी बंजर जमीन है, उसमें फॉरेस्ट एवं मनरेगा के माध्यम से प्रवासियों को पौधे लगाने के कार्य से जोड़ा जा सकता है। उन्हें पौधा लगाने से लेकर उसकी देखभाल तक की जिम्मेदारी दी जाए ताकि पौधों को सुरक्षित किया जा सके। इससे उनको रोजगार भी मिलेगा और आने वाले 8-10 सालों में हम जंगलों को भी कई गुना विकसित कर पाएंगे और उसके नीचे गोचर जमीन भी उपलब्ध हो सकेगी।


 


दीनदयाल शोध संस्थान के संगठन सचिव अभय महाजन ने इस संदर्भ में संस्थान की ओर से किए जा रहे प्रयासों को रखा तथा उन्होंने कहा कि श्रद्धेय नानाजी का मानना था कि गांव का व्यक्ति गांव में ही रहे। इसीलिए उनकी न्यूनतम आवश्यकताएं रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य तथा थोड़ा बहुत मनोरंजन के साधन उनको उपलब्ध हो एवं सड़क, बिजली, पानी की भी व्यवस्था रहे यही वह लोग चाहते हैं। प्रवासी मजदूरों के सर्वेक्षण में आर्थिक आंकलन में वही लोग बाहर जाना चाहते हैं जो लोग 15 से 20 हजार या उससे अधिक आय प्रतिमाह प्राप्त कर रहे हैं। शहर की भोजन पद्धति से भी लोग त्रस्त रहे हैं। इसीलिए एक बहुत बड़ी संख्या में लोग गांव में ही रहकर कुछ करना चाह रहे हैं।


 


राष्ट्रीय वेबिनार में ट्राइफेड के प्रबंध निदेशक प्रवीर कृष्ण, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक (कृषि) डॉ. ए के सिंह एवं उप महानिदेशक (शिक्षा) डॉ आर सी अग्रवाल, आईएआरआई के संयुक्त निदेशक डॉ जेपी शर्मा, महात्मा गांधी राज्य ग्रामीण विकास संस्थान के निदेशक डॉ संजय सर्राफ, अटारी जबलपुर के निदेशक डॉ अनुपम मिश्रा, कृषि विज्ञान केंद्र मझगवां के प्रभारी डॉ राजेंद्र सिंह नेगी द्वारा भी अपने विचार-विमर्श उसमें रखे गए। इस राष्ट्रीय वेबिनार में 11 अटारी सहित देश भर के विभिन्न क्षेत्रों से 345 लोगों की भागीदारी रही।