भूमिहीन प्रवासियों को तत्काल रोजगार से जोड़ने की जरूरत अभय महाजन
मझगवां-चित्रकूट/ भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग संस्थान-अटारी जबलपुर के द्वारा मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के तीनों कृषि विश्वविद्यालय एवं कृषि विज्ञान केंद्रों तथा दीनदयाल शोध संस्थान के साथ प्रवासी मजदूरों को रोजगार से जोड़ने की दिशा में वेब कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से प्रवासियों के रोजगार सृजन पर विमर्श किया गया। वेबिनार में मध्य प्रदेश शासन के कृषि विकास एवं किसान कल्याण मंत्री कमल पटेल मुख्य अतिथि के रुप में उपस्थित रहे। इस अवसर पर दीनदयाल शोध संस्थान के प्रधान सचिव अतुल जैन, संगठन सचिव अभय महाजन एवं बसंत पंडित के साथ भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक डॉ ए.के. सिंह, जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के कुलपति डॉ पी.के. विसेन, राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर के कुलपति डॉ एस.के. राव, अटारी जबलपुर के निदेशक डॉ अनुपम मिश्रा सहित कृषि विज्ञान केंद्रों के प्रमुखों की वेबीनार में उपस्थिति रही।
इस मौके पर मध्यप्रदेश के सतना, हरदा, बैतूल एवं छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के कृषि विज्ञान केंद्रों के द्वारा प्रवासी मजदूरों के रोजगार सृजन की दृष्टि से किए जा रहे प्रयास एवं लाॅकडाउन की गतिविधियों का प्रस्तुतीकरण किया गया।
वेबीनार में दीनदयाल शोध संस्थान के संगठन सचिव अभय महाजन ने बताया कि वापस लौटे प्रवासियों के अनुसार बहुत बड़ी संख्या में लोग अब पुनः काम के लिए वापस शहरों की ओर रुख करने को तैयार नहीं है। कई लोगों का तो कहना है कि हम अपने गांव में ही रह कर कुछ करना चाहेंगे लेकिन परदेश नहीं जाएंगे। प्रवासी मजदूर एवं कामगारों के डाटा के आधार पर लगभग 70 फ़ीसदी दोबारा वापस जाने को तैयार नहीं है। शहरों की बड़ी-बड़ी इमारतें और वहां की दिनचर्या से इन लोगों ने हाय तौबा कर ली है। शेष जो वापस जाने के मूड में है उनका कहना है कि जब कोरोना से हालात सामान्य हो जाएंगे तो वापस जाकर काम करना चाहेंगे।
श्री महाजन ने कहा कि दीनदयाल शोध संस्थान ने मझगवां जनपद के 57 ग्राम पंचायतों में वापस लौटे प्रवासियों पर जो सर्वे कार्य किया है, उसमें 15 मई तक के 469 प्रवासी मजदूर एवं कामगारों के आंकड़ों पर गौर करें तो 51 प्रतिशत ऐसे प्रवासी हैं जिनके पास खेती के लिए कोई जमीन नहीं है, जो कि लैंडलेस हैं। वहीं 49 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जिनके पास थोड़ा बहुत कृषि योग्य जमीन है लेकिन उसमें से भी 29 प्रतिशत लोगों के पास मात्र एक हेक्टेयर से भी कम खेती योग्य जमीन है। भूमिहीन प्रवासियों को तत्काल रोजगार से जोड़ने की जरूरत है। इन सभी की अभिरुचि को ध्यान में रखकर दीनदयाल शोध संस्थान ने अपने कृषि विज्ञान केंद्र के सहयोग से तत्काल कैसे रोजगार से जोड़ा जाए ताकि आर्थिक तंगी ना हो, इसके लिए रोजगार सृजन के प्रयास किए जा रहे हैं।
इस दौरान दीनदयाल शोध संस्थान के कृषि विज्ञान केंद्र मझगवां-सतना के प्रमुख डॉ राजेंद्र सिंह नेगी ने बताया कि मझगवां जनपद के अंतर्गत प्रवासियों को मिट्टी एवं जल संरक्षण गतिविधियों में मनरेगा के माध्यम से काम में लगवाया गया है, और कई लोगों को तेंदूपत्ता संग्रहण केंद्रों पर तात्कालिक रोजगार की दृष्टि से काम उपलब्ध कराया गया है। आगे उनकी अभिरुचि के अनुसार विधिवत प्रशिक्षण उपलब्ध कराकर रोजगार से जोड़ने की योजना बनी है। इसके अलावा प्रवासी मजदूरों के परिवार के कई लोग जो महुआ बीनने का काम करते हैं। उन लोगों को कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से महुआ संग्रहण के लिए बैग एवं मास्क उपलब्ध कराए गए हैं। अभी तक वे लोग 20 से 25 रूपए किलो महुआ बेचते रहे हैं, उनको जागरूक किया गया है, वे अब बिचौलियों के माध्यम से ना बेचकर सरकारी दर पर 40 से 50 रूपए किलो बेचा जा रहा है।
डॉ. नेगी ने कहा कि लाॅकडाउन में कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा मोबाइल एवं व्हाट्सएप एडवाइजरी के माध्यम से किसानों को फसल कटाई एवं कृषि यंत्रों के प्रयोग के समय कोविड-19 से बचाव के तरीकों के साथ उनकी कृषिगत समस्याओं का समाधान भी किया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि 25 मई से सतना जिले में जिस प्रकार टिड्डी दल का प्रकोप सामने आया, उसके लिए जिला प्रशासन सतना एवं कृषि विभाग के सहयोग से गांव-गांव रात्रि प्रवास करके योजनाबद्ध तरीके से कई तकनीकों का प्रयोग करते हुए 30 से 35 प्रतिशत तक टिड्डियों को नियंत्रित किया गया है।